Tuesday, March 15, 2022

उमर का तगादा

ढीले पड़ गए हाथ पांव और तन में अब कमजोरी है किंतु उछाले भरता रहता ,यह मन बड़ा अघोरी है 
हमको कसकर बांध रखी यह मोह माया की डोरी है बूढ़ा बंदर, किंतु गुलाटी की आदत ना छोड़ी है
 करना बहुत चाहता लेकिन कुछ भी ना कर पाता है उमर का यह तो तगादा है ,उमर का यह तगादा है 
 
डाक्टर कहता शकर बढ़ गई, मीठे पर पाबंदी है 
खाने अब ना मिले जलेबी ,कलाकंद, बासुंदी है 
नहीं समोसे, नहीं कचोरी तली चीज पर बंदी है 
खाना नहीं ठीक से पचता, पाचन शक्ति मंदी है 
मुश्किल से दो रोटी खाते ,खाना रह गया आधा है
 उमर का ये तो तगादा है ,उमर का ये तो तगादा है
 
 रोमांटिक तो है लेकिन अब रोमांस नहीं कर पाते हैं सुंदरियों के दर्शन करके, अपना मन बहलाते हैं 
आंखें धुंधली ,उन्हें ठीक से देख नहीं पर पाते हैं
पर जब वह बाबा कहती ,मन में घुट कर रह जाते हैं अब कान्हा से रास ना होता बूढ़ी हो गई राधा है 
उमर का ये तो तगादा है उमर का ये तो तगादा है

जैसे-जैसे उमर हमारी दिन दिन बढ़ती जाती है 
बीते दिन की कई सुहानी यादें आ तड़पाती है 
रात ठीक से नींद ना आती उचट उचट वो जाती है
यूं ही करवट बदल बदल कर रातें अब कट जाती है
 कैसे अपना वक्त गुजारें, नहीं समझ में आता है 
 उमर का ये तो तगादा है, उमर का ये तो तगादा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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