मतलबी यार
सदा बदलते रहते वो रुख, उल्टे बहते है
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं
रहते थे हरदम हाजिर जो जान लुटा ने को
वक्त नहीं उनको मिलता अब शक्ल दिखाने को
थे तुम्हारे स्वामी भक्त , जब से बदली पाली
नहीं झिझकते,तुमको देते ,जी भर कर गाली
और बुराइयां सबके आगे करते रहते हैं
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं
ना तो इनका कोई धरम है ना ईमान बाकी
चिंता है निज स्वार्थ सिद्धि की और सुख सुविधा की
जहां खाने को मिले जलेबी, रबड़ी के लच्छे उनकी सेवा को आतुर ये भक्त बने सच्चे
वहां मिले अपमान भीअगर हंसकर सहते हैं
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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