गांठ
धागे अमर प्रेम के ,अगर टूट जाते हैं
भले गांठ पड़ जाती है पर जुड़ जाते हैं
शादी का बंधन है जनम जनम का बंधन
यह रिश्ता तब बनता जब होता गठबंधन
अगर गांठ में पैसा है, दुनिया झुकती है
बात गांठ में बांधी, सीख हुआ करती है
लोग गांठते रहते ,मतलब की यारी है
रौब गांठने वाले ,पड़ जाते भारी हैं
किसी सुई में जब भी धागा जाए पिरोया
बिना गांठ के फटा वस्त्र ना जाता सिया
कंचुकी हो या साड़ी सबके मन भाते हैं
बिना गांठ के ये तन पर ना टिक पाते हैं
खुली गांठ ,कितने ही राज खुला करते हैं
गांठ बांध रस्सी पर ,सीढ़ी से चढ़ते हैं
बिना गांठ, नाड़ा भी रस्सी का टुकड़ा है
गांठों के बंधन ने हम सबको जकड़ा है
बाहुपाश भी तो एक गाठों का बंधन है
गांठ पड़ गई तो क्या ,जुड़े जुड़े तो हम है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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