प्रकृति से बातचीत
आज सवेरे ,प्रातः प्रातः
मैंने प्रकृति से करी बात
कोयल को कूकी, मैं भी कुहका
चिड़िया चहकी , मैं भी चहका
कलियां चटकी और फूल खिले,
वे भी महके , मैं भी महका
जब चली हवाएं मंद मंद
मैंने त्यागे सब प्रतिबंध
मैं भी बयार के संग संग
स्वच्छंद बहा, लग गए पंख
और जब कपोत का झुंड उड़ा
तो मैं भी उनके साथ जुड़ा
पूरे अंबर की सैर करी ,
मैंने भी उनके साथ साथ
मैंने प्रकृति से करी बात
जब रजनी बीती, भोर हुआ
तो मैं आनंद विभोर हुआ
पूरब में छाई जब लाली
तो आसमान चितचोर हुआ
भ्रमरों ने किया मधुर गुंजन
हो गया रसीला मेरा मन
तितली फुदकी, मैं भी फुदका,
कर नर्तन पाया नवजीवन
बादल से जब सूरज झांका
तो मैंने भी उसको ताका
किरणे चमकी , मैं भी चमका
फिर की प्रकाश से मुलाकात
मैंने प्रकृति से करी बात
मदन मोहन बाहेती घोटू
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