बचपन और बुढ़ापे की यह बात निराली होती है
उगते और ढलते सूरज की एक सी लाली होती है
होता है स्वभाव एक जैसा, वृद्धों का और बालक का
क्योंकि जवानी सदा न रहती,अंत बुढ़ापा है सबका
जैसे हमको आया बुढ़ापा,कभी तुम्हे भी आयेगा
जो पीड़ा हम भोग रहें हैं,तुमको भी दिखलाएगा
हमने तुम पर प्यार लुटाया, बचपन में जितना ज्यादा
हमें बुढ़ापे में तुम लौटा देना बस उसका आधा
क्योंकि उस समय हमको होगी ,जरूरत प्यार तुम्हारे की
तन अशक्त को आवश्यकता होगी किसी सहारे की
जो जिद तुम बचपन में करते यदि हम करें बुढ़ापे में
तो तुम हम पर खफा ना होना, रहना अपने आपे मे
तिरस्कार व्यवहार न करना हमको पीड़ित मत करना
तुमसे यही अपेक्षा है कि हमे उपेक्षित मत करना
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment