सब कुछ सिमट गया बोतल में
बनी अभिन्न अंग जीवन का ,मौजूद जीवन के पल पल में
सब कुछ सिमट गया बोतल में
रोज सुबह से शाम तलक हम ,बोतल के ही संग संग जीते
बालपने में मां की छाती छोड़ दूध बोतल से पीते सुबह दूध बोतल में आता ,बोतल लेकर जाते जंगल
बोतल में बंद कोकोकोला ,बोतल भर कर बिकता है जल
बोतल में ही तेल भरा है इत्र, सेंट ,परफ्यूम समाए
बोतल भर गंगाजल लाते ,बोतल में है भरी दवाएं बोतल में है मीठा शरबत, शैंपेन है, बियर सोड़ा सास टमाटर का बोतल में, है अचार पर माथा चौड़ा
कितने ही सौंदर्य प्रसाधन ,शैंपू ,भरकर बोतल आई
हार्पिक,कोलोन ,बोतल में ,भरा फिनाइल करे सफाई
गर्मी में फ्रिज खोलो ,पीलो, भरा बोतलों का ठंडा जल
अलादीन का जिन्न भटकता, अगर नहीं जो होती बोतल
दारू भरी एक बोतल से ,काम निपट जाते हैं पल में
सब कुछ सिमट गया बोतल में
मदन मोहन बाहेती घोटू
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