छुट्टी ही छुट्टी
बुढ़ापा ऐसा आया है ,
हो गई प्यार की छुट्टी
रोज हीअब तो लगती है,
हमें इतवार की छुट्टी
झगड़ते ना मियां बीवी,
बड़े ही प्यार से रहते ,
हुई इसरार की छुट्टी
हुई इंकार की छुट्टी
जरा सी मेहनत करते,
फूलने सांस लगती है ,
खतम अब हो गया दमखम,
हुई अभिसार की छुट्टी
जरा कमजोर है आंखे,
और धुंधला सा दिखता है ,
इसी कारण पड़ोसन के
हुई दीदार की छुट्टी
लगी पाबंदी मीठे पर
और खट्टा भी वर्जित है
जलेबी खा नहीं सकते
हुई अचार की छुट्टी
गए ऐसे बदल मौसम
रिटायर हो गए हैं हम
न दफ्तर रोज का जाना,
है कारोबार की छुट्टी
बचा जितना भी है जीवन
करें हम राम का स्मरण
पता ना कब ,कहां ,किस दिन ,
मिले संसार की छुट्टी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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