दल की दलदल
मिल गए कई दल, दल दल में, अस्तित्व मगर अपना अपना
मोदी को हटाए सत्ता से, मन में बस यही लिए सपना
पोषित हैं परिवारवाद से सब ,कहते खुद को समाजवादी
कुछ छूटे हुए जमानत पर ,कुछ सजायाफ्ता अपराधी
नौ वर्षों से न कमाई कुछ, ना कोई कमीशन, रिश्वत है
सब काली पूंजी स्वाह हुई ,नोटबंदी लाइ मुसीबत है
सूखे सब श्रोत कमाई के ,बदहाली ही है बदहाली
इस आशा से मिल रहे कि फिर, धन बरसे, छाए खुशहाली
पुश्तों के लिए जमा सब धन ,धीरे-धीरे बहता जाता
कुर्सी से दर्द जुदाई का ,अब इनसे सहा नहीं जाता
इनने सत्ता सुख भोग लिया ,कोशिश यही है अब केवल
इस राजनीति में, बच्चों को ,जैसे तैसे कर दे सेटल
कोशिश कर रहे सब मिलकर ,कट जाए मोदी का पत्ता
इनको फिर कुर्सी मिल जाए और हथियालें फिर से सत्ता
चल रही मगर एक खींचतानी ,सब चाहे पंत प्रधान बने
एक दूजे को देते गाली पर दोस्त बने अब सभी जने
पर हवा चल रही मोदी की, ये बादल होंगे तितर बितर
कोरस गाते मजबूरी में ,लेकिन मिलते ना इनके स्वर
सबकी अपनी अपनी ढपली, और राग अलापे सब अपना
चौबिस में मोदी आएगा और टूटेगा इनका सपना
मदन मोहन बाहेती घोटू
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