मुझे स्वर्ग से भी बढ़कर लगता है प्यारा
मेरी जन्म भूमि आगर ने मुझे संवारा
मैंने जो भी पाई सफलता है जीवन में
बोया उसका बीज गया था इस आंगन में
याद आता है मिट्टी से वह पुता हुआ घर
सीखा चलना मां की उंगली पकड़ पकड़ कर
सीखा था अ से अनार और क से ककड़ी
पूरी बारह खड़ी, याद थी मैंने कर ली
रटे एक से चालीस तक के सभी पहाड़े
और छड़ी से मिली मास्टर जी की मारे
शैतानी का दंड , हमें मुर्गा बनवाना
वो गिल्ली,वो डंडा और वो पतंग उड़ाना
वो स्लेटें,वो झोला और टाट की पट्टी
वह पल-पल में हुई दोस्ती, पल में कट्टी
वह तालाब में कपड़े धोना और नहाना
रामआसरे की सेव,चौधरी रबड़ी खाना
वह प्यारे स्वादिष्ट सिंघाड़े ,काले काले
वो खिरनी, जामुन ,आम मीठे रस वाले
वो शहर का हाई स्कूल दरबार की कोठी
दादी हाथों पकी जुवारी की वह रोटी
भाई बहन के संग हुई जो पल-पल मस्ती
होती थी परिवार ,गांव की पूरी बस्ती
सोमवार को बैजनाथ , दर्शन को जाना
रास्ते में झाड़ी से तोड़ करौंदे खाना
दशहरे को आते जब रावण का वध कर
पैर बुजुर्गों के छूते थे, घर-घर जाकर
मां का लाड़ दुलार और वह पालन पोषण
मिली पिताजी की शिक्षाएं और अनुशासन
रोज शाम को छत पर जाकर गिरना तारे
क्या क्या करें याद हम ,क्या क्या और बिसारे
जब भी आती याद,बहुत विव्हल होता मन
आंखों आगे , नाचा करता ,मेरा बचपन
यहां की माटी लाल, मेरा तो है यह चंदन
मातृभूमि तुझको मेरा शत शत अभिनंदन
मदन मोहन बाहेती घोटू
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