बहुत नींद आती सवेरे सवेरे
छंटते हैं जब रात के सब अंधेरे
बहुत नींद आती, सवेरे सवेरे
कई बीती बातें मानस पटल पर
आ तेरती है ,कई स्वप्न बनकर
किस्से पुराने बहुत याद आते
हंसाते कभी तो कभी है रुलाते
मगर आंख खुलती तो सब भूल जाते
छट जाते यादों के बादल घनेरे
बहुत नींद आती, सवेरे सवेरे
तन से लिपट करके रहती रजाई
नहीं आंख खुलती है,आती जम्हाई
उठो जो अगर तो बदन टूटता है
मुश्किल से बिस्तर मगर छूटता है
बड़ा दिल कड़ा कर,अगर उठ भी जाते
आलस के बादल हमें रहते घेरे
बहुत नींद आती, सवेरे सवेरे
अगर हो जो छुट्टी या संडे का दिन है उठना सवेरे , बड़ा ही कठिन है
बीबी जगाती, बना चाय प्याला
होता सुबह का मजा ही निराला
बिस्तर में लेकर के चाय की चुस्की,
शुरुआत होती है दिन की सुनहरे
बहुत नींद आती, सवेरे सवेरे
मदन मोहन बाहेती घोटू
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