मैं
पूरा जगत जीत लेने की जिद जिंदा है
भरा हुआ है जोश जिगर में और जुनून है
रहा बुलंदी पर हरदम ही मेरा हौसला
और रग रग में उबल रहा वह गरम खून है
मुझको भी गाली देना बस इतना आता
जिससे सकूं निकाल भडासें अपने मन की
कभी किसी का कोई बुरा मैं नहीं मानता
यही प्रवृत्ति रही सदा मेरे जीवन की
भला आदमी बनने के चक्कर में मैंने
कई बार चांटे खाए हैं ,दुख झेले हैं
क्या बदलाऊं मेरे संग क्या-क्या गुजरी है
मेरे अनुभव कितने उलझे ,अलबेले हैं
कई बार अरमान उड़ गए गुब्बारे बन
कई बार कोई ने फोड़ा , पिने चुभा कर
कई बार यह लगा सरल कितना जीवन पथ,
पड़ी असलियत मालूम पर जब खाई ठोकर
कई बार भूख सोया तो कभी प्रभु ने
मेरी थाली में भर भर कर पकवान परोसे
तूफानों में भी यह मेरे जीवन की किश्ती चलती रही ,नहीं डूबी भगवान भरोसे
मुझको मत कोसो ,मेरे व्यवहार ना कोसो
जैसे तुमने सिखलाया वैसे जीता हूं
महाभारत के महासमर की ज्ञान लुटाती
प्रभु के मुख से प्रकट हुई भगवत गीता हूं
इसीलिए अब जीवन के अंतिम वर्षों में
मैं अपना ध्यान केंद्रित किया स्वयं पर
करने लगा वही सब कुछ जो मुझको सुख दे
मुझको लड़ने की शक्ति दे मेरा ईश्वर
मदन मोहन बाहेती घोटू
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