पिताजी आप धन्य है
न तुमसा कोई अन्य है
जब से मैंने आंखें खोली
मिला आपका प्यार
चिपक आपके कंधे पाया
था आनंद अपार
कदम कदम चलना सिखलाया
मुझको संभल संभल कर
कभी उछाला और संभाला,
दूर किया मेरा डर
तुमने अक्षर ज्ञान कराया,
गिनती, लिखना ,पढ़ना
कैसे लड़ना बाधाओं से ,
कैसे आगे बढ़ना
मुसीबत ने जब भी घेरा ,
बने सहारा मेरा
ज्ञान दीप बन किया उजाला,
जब भी छाया अंधेरा
ऊंची नीची परिस्थितियों में ,
कभी नहीं घबराना
विचलित होना नहीं ,सदा ही
हंसना और मुस्काना
जीवन सीधा और सरल हो ,
रहन-सहन हो सादा
सदा सात्विक भोजन करना
उम्र मिलेगी ज्यादा
करना नहीं घमंड कभी भी
गुस्सा कभी न करना
जितना भी हो सके हमेशा
प्रभु का नाम सुमरना
चले आपके पदचिन्हों पर
आज सुखी हम सारे
ढेरों आशीर्वाद मिले हैं
छूकर चरण तुम्हारे
कमाया बहुत पुण्य है
पिताजी आप धन्य है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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