बूढ़े बुढ़िया और बुढापा
देखो बूढ़ा अपनी बुढ़िया ,
को किस तरह सताता है
काम धाम कुछ भी ना करता,
केवल जुबां हिलाता है
जब से हुआ रिटायर घर में
रहता बैठा ठाला है
दिन में सात आठ बार चाहिए ,
उसे चाय का प्याला है
थोड़ा बरसाती मौसम हो
पकौड़ियां तलवाता है
या स्विग्गी से मंगा समोसे
चुपके-चुपके खाता है
कभी चाहिए दही पापड़ी ,
छोला और भटूरा है
आलू टिक्की, पानी पूरी
का भी आशिक पूरा है
गाजर हलवा, गरम जलेबी,
खाना बहुत सुहाता है
स्वीट टूथ है देख मिठाई
मुंह पानी भर लाता है
हालांकि यह सब खाने की
लगी हुई पाबंदी है
फिर भी आंख चुरा खाने की
उसकी आदत गंदी है
सुबह-सुबह अखबार चाटता
देख सीरियल टीवी में
दिनभर की मिल गई सेविका
उसको अपनी बीवी में
हाथों में हर दम मोबाइल
व्हाट्सएप पर चैट करें
देर रात तक रहे जागता
सोने में भी लेट करें
कभी बोलना सर दुखता है
थोड़ा तेल लगा दो तुम
कभी बोलना दर्द पांव में
थोड़े पैर दबा दो तुम
कभी बैठकर बीते किस्से
दोनों याद किया करते
हर फंक्शन में ,दोनों सज कर
खुलकर भाग लिया करते
बुढ़िया बूढ़े को सहती है
बूढ़ा बुढ़िया को सहता
पूरा दिन भर एक दूजे का
ख्याल हमेशा पर रहता
कभी रूठना ,कभी झगड़ना
मान मनौव्वल कभी-कभी
बहुत अधिक भावुक हो करके
रोने के पल कभी कभी
दोनों में से पहले कौन
जाएगा यह चिंता करना
कैसे गुजरेगा एकाकी
जीवन सोच सोच डरना
कहता जितना जीवन जीना
क्यों ना मस्ती मौज करें
मौत आनी है ,आएगी ही
उससे क्यों हर रोज डरें
इस जीवन के बचे कुचे दिन
शान रहे और ठाठ रहे
इसी तरह मिल बूढ़े बुढ़िया
वृद्धावस्था काट रहे
मदन मोहन बाहेती घोटू
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