हृदय की बात
हृदय हमारा कब अपना है
यह औरों के लिए बना है
इसको खुद पर मोह नहीं है,
सदा दूसरों संग खुश रहता
कभी ना एक जगह पर टिकता
धक धक धक-धक करता रहता
कल कल बहता नदियों जैसा,
लहरों सा होता है प्यारा
मात-पिता के दिल में बसता,
बन उनकी आंखों का तारा
कभी धड़कता पत्नी के हित
कभी धड़कता बच्चों के हित
यह वह गुल्लक है शरीर का,
प्यार जहां होता है संचित
कोई हृदय मोम होता है
झट से पिघल पिघल है जाता
तो कोई पाषाण हृदय है ,
निर्दय कभी पसीज पाता
हृदय हृदय से जब मिल जाते
एक गृहस्थी बन जाती है
होते इसके टुकड़े-टुकड़े
जब आपस में ठन जाती है
युवा हृदय आंखों से तकता,
रूप देखता लुट जाता है
नींद ,चैन, सब खो जाते हैं ,
जब भी किसी पर यह आता है
कभी प्रफुल्लित हो जाता है
कभी द्रवित यह हो जाता है
रोता कभी बिरह के आंसू ,
कभी प्यार में खो जाता है
इसके एक-एक स्पंदन
में बसता है प्यार किसी का
इसकी एक-एक धड़कन में
समा रहा संसार किसी का
अगर किसी से मिल जाता है
जीवन स्वर्ग बना देता है
चलते-चलते अगर रुक गया
तुमको स्वर्ग दिखा देता है
इसके अंदर प्यार घना है
हृदय तुम्हारा कब अपना है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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