Tuesday, September 21, 2010

पो फटी

पो फटी
कलियाँ चटकी
भ्रमरों के गुंजन स्वर महके
डाल डाल पर पंची कहके
गों रामभाई
मंदिर से घंटा ध्वनि आई
शंखनाद भी दिया सुनाई
मंद समीरण के झोंको ने आ थपकाया
प्रकृति ने कितने ही स्वर से मुझे जगाया
लेकिन मेरी नींद न टूटी
किन्तु फ़ोन की एक घंटी से मैं जग बैठा
कितना भौतिक
मुझको है धिक्

2 comments:

  1. Thank's for your comments. I have added some new translation of hindi poems written by me. The hindi poems will be published shortly.

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