अपने ही दूरस्थ हो गए
उम्र बड़ी हम पस्त हो गए
थे हम प्रखर सूर्य चमकीले
लगता है अब अस्त हो गए
देखे थे जो हमने मिल कर
वो सब सपने ध्वस्त हो गए
हमको छोड़ किसी कोने में
सब अपने में मस्त हो गए
रोटी, कपडा, खर्चा, पानी
दे कर के आश्वस्त हो गए
अपनों के बेगानेपन की
बीमारी से ग्रस्त हो गए
अब तो जल्दी राम उथले
हम तो इतने त्रस्त हो गए
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