Monday, December 20, 2010

दिया

          दिया
माटी का तन
रस मय जीवन
में हूँ दिया
मैंने बस दिया ही दिया
तिमिर त्रास को भगा
जगती को जगमगा
मैंने सदा प्रकाश दिया
निज काया को जला
करने सब का  भला
प्यार का उजास दिया
जब तक था जीवन रस
जलता रहा मै बस
औरों का पथ प्रदर्शन करता रहा
स्वार्थ को छोड़ पीछे
मेरे स्वम के नीचे
अँधियारा पलता रहा
और दुनिया ने मुझे क्या दिया
रिक्त हुआ ,फेंक दिया
मै हू दिया

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