गृह प्रवेश हे हनीमून सा
मन की चार दिवारी में जब कोई बसता
नयन निहारे पलक बिछा कर जिसका रस्ता
जिसकी मीठी वाणी में हे प्यार बरसता
वो प्यारा मदमस्त चेहरा हँसता हँसता
दिल के हर एक कोने में जिसकी खुशबू हे
नवल वृक्ष की नवल कली या नव प्रसून सा
गृह प्रवेश हे हनीमून सा
जिसमे बस कर मन को मिल जाती हो राहत
रहने वालो में होती आपस में चाहत
कोने कोने में बिखरी हो प्यार मोहब्बत
जहा लक्ष्मी वास करे ,खुल जाये किस्मत
थके हुए हरे प्राणी को जिस चोखट में
आते ही मिल जाता हो मन में सुकून सा
गृह प्रवेश हे हनीमून सा
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