Wednesday, January 26, 2011

आज प्रात की बेला में

आज प्रात  की बेला में
मैंने मुहं चूमा उषा का ,किरणों के संग खेला मै
मोती सी शबनम की बूंदे ,हरी घास पर लेती अल्हड
मस्त समीरण के झोंको से,नाच रही थी कलियाँ चंचल
पंछी नीद छोड़ निकले थे,ची ची ची ची चहक रहे थे
खुशबू का आँचल फहराते,फूल गुलाबी महक रहे थे
अभी उबासी लेकर भ्रमरों ने,बस अपनी आँखे खोली थी
तभी डाल पर फुदक फुदक कर ,कुहू कुहू कोयल बोली थी
नव प्रभात की, नवल शिशु सी, सोंधी सोंधी खुशबू आई
आँखे खोल जूही की कलियों ने छुप कर के ली अंगडाई
पुरवैया ने थपकी दी तो ,पारिजात ने पुष्प बिछाये
दूर क्षितिज से सूरज झाँका, वृक्षों पर किसलय मुस्काए
उषा के गालों पर लाली ,छायी प्रिय के मधुर मिलन की
फिर से शुरू हो गयी हलचल ,एक नए दिन की ,जीवन की
भाव विभोर हो गया लख कर ,रूप भोर का अलबेला ,मै
आज प्रात की इस बेला में




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