Friday, February 25, 2011

मैंने तेरा साथ पा लिया

मेने तेरा साथ पा लिया
एक नया विश्वास पा लिया
अंत हो गया शिशिर ऋतू का
बासन्ती मधुमास पा लिया
मन मिलने पर तन मिलते है
तन मिलने पर मन मिलते है
तन मन से मिल कर अनजाना
बन जीवन में खास पा लिया
जीवन पथ सुनसान पड़ा  था
छाया हुआ घना कोहरा था
परेशान राही ने तुमसे
उज्जवल प्रेम प्रकाश पा लिया
आया टूट कहीं से तारा
दूर किया जीवन अँधियारा
थमी हुयी जीवन की गति ने
एक नया आगाज पा लिया
तुझमे भरा हुआ अपनापन
प्यार,त्याग है और समर्पण
महक गया है मेरा जीवन
तुझ सा हमदम पास पा लिया
मैंने तेरा साथ पा लिया

तुम मेरी प्रिय ,प्रियवर,प्रियतम

<h2>हैं अधर मधुर,है बदन मधुर
है रूप मधुर ,यौवन मधुरम
मुस्कान मधुर,है गान मधुर
.तन भी मधुरम, मन भी मधुरम
सुन्दर अलकें,सुन्दर पलकें
सुन्दर आनन्, सुन्दर है तन
सुन्दर नयनम,सुन्दर चितवन
तुम हो सुन्दरतर,सुन्दरतम
तुम रससिक्त ,पूरी रसमय
रसमय बातें ,रसमय चुम्बन
मन हरषाया,जब बरसाया
तुमने मुझ पर,रसमय सावन
हिलना मादक ,मिलना मादक
है श्वास श्वास में मादकपन
तन में प्रकाश, मन में प्रकाश
आलोकित तुमसे ये जीवन
महके तन मन,महके जीवन
तुम हो नंदन वन का चन्दन
तुम्हारे संग ,जीवन में रंग
तुम मेरी प्रिय ,प्रियवर,प्रियतम</h2>

Wednesday, February 23, 2011

मुझको तेरा प्यार मिल गया

मुझको तेरा प्यार मिल गया
एक नया संसार मिल गया
बहुत अकेला था बिन तेरे
लगा सात ,अग्नि के फेरे
सात जनम संग संग रहने के
सपनो को आकर मिल गया
मुझको तेरा प्यार  मिल गया
प्यार भरी जीवन राहों में
तुझको भर अपनी बाहों में
जैसे मैंने चाँद पा लिया
करने को अभिसार मिल गया
मुझको तेरा प्यार मिल गया
पूर्ण हुई इच्छा मन चाही
पाया तुम जैसा हमराही
जीवन पथ पर साथ तुम्हारे ,
चलने का अधिकार मिल गया

>कभी कभी मेरा मोबाईल

<h2>कभी कभी मेरा मोबाईल
मुझको बड़ी प्रेरणा देता
करो बेटरी को रिचार्ज तुम
जब मुझको संदेशा देता
कभी कभी जब गलती से मै
भटक दायरे से जाता हूँ
नेटवर्क से बाहर हो तुम
वो मुझको झट चेता देता
दिन भर भाग दोड़ से डर कर
स्लीप मोड में मै जाता हूँ
वाईब्रेशन मोड हिला कर
मुझको नयी चेतना देता
इंटरनेट,फेसबुक,ट्विटर
गाने,वीडियो और केमरा,
सारी दुनिया मुट्ठी में है
मुझको बड़ा होंसला देता
कभी कभी मेरा मोबाईल
मुझको बड़ी प्रेरणा देता</h2>
,

Tuesday, February 22, 2011

सत्तरवें जन्म दिन पर


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
उनसित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
उनसित्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन  पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
उनसित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते

  

Sunday, February 20, 2011

उमर का आलम

उमर का हमारी ये कैसा है आलम
सत्तर का है तन और सत्रह का मन
रंगे बाल हमने,किया फेशियल है
छुपाये न छुपती,मगर ये उमर है
होता हमारा ये दिल कितना बेकल
हसीनाएं कहती,जब बाबा या अंकल
करे नाचने मन,मगर टेढ़ा आँगन
उमर का हमारी ये कैसा है आलम
बहुत गुल खिलाये ,जवानी  में हमने
उबलता था पानी,लगी बर्फ जमने
भले ही न हिम्मत बची तन के अन्दर
गुलाटी को मचले है ,मन का ये बन्दर
कटे पर है ,उड़ने को बेताब है मन
उमर का हमारी ,ये कैसा  है आलम

Saturday, February 19, 2011

मैंने तुम पर प्यार लुटाया ,बस ऐसे ही

मैंने तुम पर प्यार लुटाया ,बस ऐसे ही
जाने क्यों तुम पर दिल आया ,बस ऐसे ही
बसंती ऋतू ,मुस्काती थी ,महक रही थी
कूक रही थी कोयल ,चिड़िया चहक रही थी
मस्त पवन के मदमाते झोके आते थे
भंवरे गुंजन कर फूलों पर मंडराते थे
खेत सुनहरी सरसों के सरसाये ही थे
गेहूं की बाली में दाने आये ही थे
तुमने मादक अंगडाई ली थी अलसा कर
तिरछी नज़रों से देखा था ,कुछ मुस्का कर
उगते सूरज में सोने सा रूप लगा था
मेरे मन में ,प्यार तुम्हारे लिए जगा था
मुझ पर था खुमार सा छाया ,बस ऐसे ही
मैंने तुम पर प्यार लुटाया ,बस ऐसे ही


Friday, February 18, 2011

ये उमर बुढ़ापे की भी होती कमाल है ,

कहने को तो हम हो रहे सत्तर की उमर के
दिल की उमर अभी भी सिर्फ सत्रह साल है
है बदन बदहाल और तन पर है बुढ़ापा ,
लेकिन मलंगी मन में ,मस्ती है ,धमाल है
हो जाए बूढा कितना भी लेकिन कोई बन्दर,
ना भूले मारने का गुलाटी खयाल है
जब भी कभी हम देखते है हुस्न के जलवे
बासी कढी में फिर से आ जाता उबाल है
ये बात सच है आजकल गलती है देर से,
लेकिन कभी ना कभी तो गल जाती दाल है
ना कोई चिंता है किसी की ,ना ही फिकर है
ये उमर बुढ़ापे की भी होती कमाल है










 ,

Wednesday, February 16, 2011

मजा - मौसम का

शीत लहर सर्दी में,लहर उठाती मन में
घुस रजाई बिस्तर में,विंटर मनाते है
जब गर्मी  बढती है ,प्यास बहुत लगती है
चूम तेरे होठों को ,प्यास हम बुझाते है
बारिश की फुहारें, भिजोती तन मन सारे
प्रियतम संग प्रेम रस में ,भीग भीग जाते है
बासंती ऋतू में जब ,बौर आते आमों पर
प्यार के दीवाने हम ,खुद ही बौरा जाते है
होली पर रंग लगा,दीवाली दीप जला,
वेलेन ताईन डे पर हम ,चिपक चिपक जाते है
मौसम तो बहाना है ,साथ तेरा पाना है
मजा हर एक मौसम का ,जम कर उठाते है


Friday, February 11, 2011

ऋतू संहार

                ऋतू संहार
कहा धरा ने ये सूरज से ,प्रिय सूरज जी
बहुत सताते हो हमको ,तुम्हारी मरजी
जब तुम होते दूर मुझे कुछ नहीं सुहाता
साथ तुम्हारा पाने तरस तरस मन जाता
ग्रीष्म ऋतू में आकुल व्याकुल दिल होता है
तुम्हारी उष्मा सहना  मुश्किल  होता है
जब करीब आते हो ,तन जल जल जाता है
मगर दूर रहना भी मन को खल जाता है
प्यास बुझाने आते ,बर्षा के मौसम में
पर बादल बाधा बन जाते मधुर मिलन में
आते हो कुछ देर के लिए ,छुप जाते हो
आँख मिचोली कर के मन को अकुलाते हो
और शिशिर में आस मिलन की जब जगती है
शीत लहर की चुभन, दग्ध तन को करती है
किन्तु तरसता रहता है मन तुम्हारे बिन
नहीं समय मिलता तुमको ,होता छोटा दिन
फिर आता है जब बसंत का मौसम प्यारा
मादकता से पुलकित होता तन मन सारा
होली का मदनोत्सव या  वेलेंटा इन डे
तुम्हारा सानिध्य तार छूता है तन के
प्यार लुटाते हो मुझ पर तुम जी भर भर जी
कहा धरा ने ये सूरज से ,प्रिय सूरज जी


Tuesday, February 8, 2011

एक कहानी -एक कविता - पारस पत्थर


     (बाल कविता)
श्रम से डरता एक किसान
करता संतों का सन्मान
धरम करम में था विश्वास
गया एक साधू के पास
साधू  बाबा का ध्यान
सेवा करने लगा किसान
साधू बोले आँखे खोल
क्या है इच्छा बच्चा बोल
बोला कृषक ,धन्य जय साधो
एक पारस पत्थर दिलवादो
खेत खोद जा बच्चा अपना
पूरा होगा तेरा सपना
साधू बाबा का वरदान
लगा खोदने खेत किसान
उसने हांके हल और बख्खर
मिला नहीं पर पारस पत्थर
उसने बोया उपजा नाज
आ बोले साधू महाराज
श्रम का पारस पत्थर होना
मिटटी भी बन जाती सोना

शारदे माँ शारदे

शारदे माँ शारदे
मुझे ह्रदय का प्यार दे
वर दे की बनू प्रग्य मै
तू जिंदगी  संवार दे
वीणा वादिनी ,सुर की दाता
हंस वाहिनी बुद्धि प्रदाता
मुझको वर दे स्वर दे माता
नव बसंत बहार दे
शारदे माँ शारदे
कर दे माँ इच्छा सब पूरी
पिला ज्ञान की जीवन मूढ़ी
रहे न मेरी बुद्धि अधूरी
मिटा तू अन्धकार दे
शारदे माँ शारदे
भटक रहे अंधियारे में हम
नव प्रकाश दे ,हर ले सब तम
माँ तेरी वीणा के स्वर हम
नूतन हमें विचार दे
शारदे माँ शारदे
मधुरिमा दे हमें प्यार दे
हम भूखे है ,प्रीत धार दे
आशीर्वादों से दुलार दे
जीवन तू निखार दे
शारदे माँ शारदे

Sunday, February 6, 2011

तुम बोराये हो आम्र वृक्ष

फूली सरसों ,फूले पलाश
विकसे पुष्पों की मधु सुवास
सब देख देख कर आस पास
फागुन की मदमाती ऋतु में
  तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
गेहूं की बाली थी खाली
अब हुई भरे दानो वाली
मदमस्त थिरकती मतवाली
बाली की बाली उम्र देख ,
     तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
सुन गीत मद भरे कोकिल के
तुम हुए मंजरित चंचल से
यह सोच लदोगे कल फल से
सपनो में बेसुध मतवाले
     तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
कुछ बौर झडेगे आंधी में
कुछ बन अचार या चटनी में
पक पायेगे कुछ रस भीने
नियति नीयत से अनजाने
   तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
हर फल की नियति भिन्न भिन्न
हर फल का जीवन प्रश्न चिन्ह
कोई प्रमुदित है,कोई खिन्न
हर फल बिछ्डेगा फिर भी तुम
क्यों बोराए हो आम्र वृक्ष



 

Saturday, February 5, 2011

एक कहानी -एक कविता

एक  कहानी -एक  कविता
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चला यात्री सूखा पत्ता एक अकेला
मिला राह में उसे एक मिटटी का ढेला
भले एक से दो कह निकले तीरथ करने
ये दो साथी अपना पूर्ण मनोरथ करने
न थी उन दिनों रेल न तांगा,मोटर गाडी
धीरे धीरे पग धरते दोनों बढे अगाडी
आंधी चली और तूफ़ान जोर का आया
पत्ते पर चढ़ ढेले ने था उसे बचाया
आगे आंधी रुकी जोर का बरसा पानी
पत्ते ने चढ़ ढेले पर थी छतरी तानी
उठते गिरते ,इसी तरह काटा सब रास्ता
गला न ढेला,और नहीं उड़ पाया पत्ता
एक दूसरे की रक्षा जब करते साथी
होते पूरे कार्य ,मुश्किलें सब हट जाती

एसा बसंत आये

कली में महक हो ,
तरु पर चहक हो
पवन की पलक पर
सुमन की लहक हो
सभी मुस्कराए
सभी दिल मिलाएं
हर डाल बिकसे
नए पुष्प आये
झडे पान पीले,तरुण हर तरु हो
इस शीत का भी ,कभी अंत आये
जन जन हँसे और जीवन हँसे
सब रहें खुश कि एसा बसंत आये


नुस्खा

 ऊन और  स्वेटर की सलाईयाँ
कुछ उलटे फंदे
कुछ सीधे फंदे
बस ,बन गया स्वेटर
मै,और प्यार भरी नजरें
कुछ नखरे ,झटके
अदा और लटके
बस ,बन गए मिस्टर

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना
---------------------
वीनापाणी, तुम्हारी वीणा ,मुझको स्वर दे
नव जीवन ,उत्साह नया माँ मुझ में भर दे
पथ सुनसान ,भटकता सा राही हूँ मै,
ज्योति तुम्हारी निर्गम पथ ,ज्योतिर्मय करदे
                        २
मात,मेरी प्रेरणा बन,प्रेम दो ,नव ज्योति दो ,
मै तुम्हारा स्वर बनू,हँसता रहूँ ,गाता रहूँ
प्यार दो ,झंकार दो ,ओ देवी स्वर की सुरसरी
तान दो ,हर बार मै ,हर लय नयी ,लाता रहूँ

मात शारदे मुझे प्यार दे

मात  शारदे
मुझे प्यार दे
वीणा वादिनी,
नव बहार दे
मन वीणा को
झंकृत करदे
हंस वाहिनी
एसा वर दे
सत पथ अमृत
मन में भर दे
बुद्धि दायिनी
नव विचार दे
मात शारदे
ज्ञान सुधा की
घूँट पिलादे
सुप्त भाव का ,
जलज खिलादे
गयी चेतना,
फिर से ला दे
दाग मग नैया
लगा पार दे
मात शारदे
भटक रहा मै
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे
तम हर ओ माँ
नव ले दे तू
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी
प्रीत धार दे
मात शारदे
मुझे प्यार दे
वीणा वादिनी
नव बहार दे


Wednesday, February 2, 2011

गले की गली में

निकलती  जिधर से थी सरगम की ताने
हंसी, खिलखिलाहट,सुरीले से गाने
बड़ी खरखराहट उधर हो चली है
गले की गली में अजब  खलबली है
न वो मीठी बातें ,न ताने, न किच किच
भला बोलें कैसे ,गले में है खिच खिच
समझ में न आता ,ये क्या सिलसिला है
चलती जुबान है और थकता गला है
गले की गली में है ट्राफिक गजब का
यहाँ  आना जाना लगा रहता सबका
खांसी, उबासी, गर्म ,सर्द साँसे
सभी खाना पीना  गुजरता यहाँ से
कभी गोलगप्पे ,कभी आलू टिक्की
कभी ठंडा कोला ,या चुस्की बरफ की
गरम चाय काफी,कभी पीज़ा ,बर्गर
कभी चाटना  चाट चटकारे लेकर
पकोड़ी, समोसे, इमरती, जलेबी
गुजरते सभी इस गली से गले की
गला थक के बैठा है,सुस्ता रहा है
ये चुप्पी का आलम गजब ढा रहा है