तू ही तू है आँखों में
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पहले सपने, फिर तेरी छवि,छाई यूं है आँखों में
दिल के हर कोने में बस तू ,तू ही तू है आँखों में
तुझसे पल भर की भी दूरी ,अब मुझको मंजूर नहीं,
चैन नहीं तुझको देखे बिन,एसा क्यूं है आँखों में
तुझे देखता हूँ में जब जब ,निज सुध बुध खो देता हूँ
मंत्र मुग्ध सा मै हो जाता ,क्या जादू है आँखों में
है सुरमई ,कभी कजरारी ,मतवाली तेरी चितवन
मुझ पर डोरे डाल फसाती,मुझको तू है आँखों में
कभी दहकती अंगारों सी,कभी बरसती बिन बादल,
या फिर कोई जलजला आना,हुआ शुरू है आँखों में
सोयी थी या रोई थी,क्यों हुयी सुर्खरू ये आँखें,
की रुखसार ,लबों की मेचिंग,तूने यूं है आँखों में
राहें तक तक,बैठा अब तक ,थक थक आँखें लाल हुई,
नहीं विरह के ,किन्तु जलन से,अब आंसूं है,आँखों में
कोई कहता हिरणी सी है,कोई मछली,खंजन सी,
या तो कोई अजायबघर है,या फिर जू है आँखों में
नयन द्वार को,ढक कर,काले चश्मे से क्यों छुपा लिया
छुप छुप मुझको देख रही हो,या फिर फ्लू है आँखों में
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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पहले सपने, फिर तेरी छवि,छाई यूं है आँखों में
दिल के हर कोने में बस तू ,तू ही तू है आँखों में
तुझसे पल भर की भी दूरी ,अब मुझको मंजूर नहीं,
चैन नहीं तुझको देखे बिन,एसा क्यूं है आँखों में
तुझे देखता हूँ में जब जब ,निज सुध बुध खो देता हूँ
मंत्र मुग्ध सा मै हो जाता ,क्या जादू है आँखों में
है सुरमई ,कभी कजरारी ,मतवाली तेरी चितवन
मुझ पर डोरे डाल फसाती,मुझको तू है आँखों में
कभी दहकती अंगारों सी,कभी बरसती बिन बादल,
या फिर कोई जलजला आना,हुआ शुरू है आँखों में
सोयी थी या रोई थी,क्यों हुयी सुर्खरू ये आँखें,
की रुखसार ,लबों की मेचिंग,तूने यूं है आँखों में
राहें तक तक,बैठा अब तक ,थक थक आँखें लाल हुई,
नहीं विरह के ,किन्तु जलन से,अब आंसूं है,आँखों में
कोई कहता हिरणी सी है,कोई मछली,खंजन सी,
या तो कोई अजायबघर है,या फिर जू है आँखों में
नयन द्वार को,ढक कर,काले चश्मे से क्यों छुपा लिया
छुप छुप मुझको देख रही हो,या फिर फ्लू है आँखों में
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
बहुत खूब, शुभकामनायें आपके मनोरंजक अंदाज़ के लिए :-)
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