Friday, June 10, 2011

हवा,धरती और बादल

हवा,धरती और बादल
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हवाओं मुस्कराओ आज तुम,  दिन फिर गए मेरे
कि देखो आज छाये है धुमड कर घन,गगन घेरे
गरज है ये नहीं घन की,मिलन का गीत आता है
बुझाने प्यास उर की आज मेरा मीत आता है
धरा ने जो कहा ये तो,यूँ मुस्का के ,हवा बोली
तेरे साजन,हमारे भी,तो कुछ लगते,  अरी भोली
करेंगे दिल मेरा ठंडा,तुम्हारी,प्यास के पहले
कलेजे से मेरे लग कर,लगेंगे फिर गले तेरे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

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