Saturday, July 9, 2011

बारात

    बारात
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बारात चढ़ रही है
मंथर गति से ,आगे बढ़ रही है
दुल्हे के मित्र और रिश्तेदार,
पसीने से तरबतर,
जोश से नाच रहे है
और मोका मिलने पर,
दुल्हन की सजीधजी,
सहेलियों को ताक रहे है
दुल्हे के  कुछ रिश्तेदार,
दुल्हे पर नोट वार,
हाथ ऊँचा कर
 सबको दिखाने में लग रहे है
और बैंड बाजे वाले, नोट पकड़ने को ,
चील कव्वों की तरह लपक रहे है
लड़की का  बाप,थका हुआ व्यथित है ,
चेहरे पर चिंता है
और लड़के का बाप ,प्रफुल्लित है,
मन ही मन दहेज़ की रकम गिनता है
दूल्हा,सेहरे में चेहरे को छुपाये,
न कुछ देखता है न सुनता है
बस आने वाले खुशहाल दिनों के सपने बुनता है
दुल्हन,कहीं चुपके से,
कनखियों से,
घोड़ी पर चढ़े,अपने सजे धजे,
दुल्हे को निहारती है
और दुल्हन की माँ भी सज रही है,उसे ,
अपने दामाद की, उतारनी आरती है
शादी के मेहमान,
बारात आने के इन्तजार में,
लग रहे है थके थके
सोच रहे है,कब बारात आये
और कब खाना लगे
कुछ मेहमान तो,
शगुन का लिफ़ाफ़ पकड़ा कर
खिसक गए है,चाट पापड़ी खाकर
घोड़ी की लगाम पकडे,
घोड़ी वाला सोच रहा है,
क्या एसा भी दिन आएगा?
जब वो भी दूल्हा बन,
ऐसी सजी धजी घोड़ी पर बैठ पायेगा
बेन्ड वाला सोच रहा है,
कि जब होगी उसकी शादी,
तो उसके साथी
तो  बन जायेगे बाराती,
तो फिर बेन्ड कौन बजाएगा
गेस का हंडा उठानेवाली महिला
सोच रही है ,
कि कब बारात ठिकाने पर पहुंचे,
और उसे मजदूरी मिल जाये
और वो अपने घर जाकर,
भूखे बैठे बच्चों को खाना खिलाये
और तो और,दुल्हे कि अम्मा,अभी से,
दादी बनने के सपने गढ़ रही है
बारात आगे बढ़ रही है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


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