अबके सावन में
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इन होटों पर गीत न आये, अबके सावन में
बारिश में हम भीग न पाए,अबके सावन में
अबके बस पानी ही बरसा,थी कोरी बरसात
रिमझिम में सरगम होती थी,था जब तेरा साथ
व्रत का अमृत बरसाती थी,जो हम पर हर साल,
वो हरियाली तीज न आये,अबके सावन में
तुम्हारी प्यारी अलकों का,था मेघों सा रंग
तड़ित रेख सा,दन्त लड़ी का,मुस्काने का ढंग
घुमड़ घुमड़ कर काले बादल ,छाये कितनी बार
पर वो बादल रीत न पाये,अबके सावन में
पहली बार चुभी है तन पर,पानी की फुहार
जीवन के सावन में सूखे,है हम पहली बार
सूखा सूखा ,भीगा मौसम,सूनी सूनी शाम,
उचट उचट कर नींद न आये,अबके सावन में
मदन मोहन बहेती'घोटू'
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