भ्रमर,तितलियाँ और मधुमख्खी
--------------------------------------
खिले पुष्प पर गुंजन करता काला भंवरा
रस पाता है ,उड़ जाता है
तितली भी तो मंडराती है
रस पीती है ,इठलाती है
लेकिन जब उन्ही पुष्पों पर,
मधुमख्खी है आती जाती
घूँट घूँट कर,रस भर लेती,
और संचय हित,
अपने छत्ते में ले जाती
भ्रमर,तितलियाँ और मधुमख्खी,
तीनो ही हैं रस के प्रेमी,
किन्तु प्रवृत्ति भिन्न भिन्न है
भ्रमर प्रेमी सा,रस का लोभी,
रस पाता है,उड़ जाता है
और तितलियाँ,आधुनिका सी,
पुष्पों पर चढ़ इठलाती है
किन्तु सुगढ़ गृहणी के जैसी है मधुमख्खी,
रस भी चखती,और बचा कर,
संगृह भी करती जाती है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
No comments:
Post a Comment