Saturday, July 30, 2011

बचपन की बातें, जब याद आती है बड़ा तडफाती है

बचपन की बातें,
जब याद आती है
बड़ा तडफाती  है
बरषा के बहते पानी में ,
कागज की नावों के ,
पीछे दोड़ने वाला, मै,
अब कागज के नोटों के ,
पीछे दोड़ता रहता हूँ
शाम ढले,छत पर बैठ,
नीड़ में लौटते हुए पंछियों को गिनना,
और बाद में उगते हुए तारों की गिनती करना ,
जिसका नित्य कर्म होता था,
अब नोट गिनने में इतना व्यस्त हो गया है,
कि उसके पास,
प्रकृति के इस अद्भुत नज़ारे को ,
देखने का समय ही नहीं है
माँ का आँचल पकड़,
चाँद खिलौना पाने कि जिद करनेवाला,
अब खुद व्यापार कि दुनिया में,
सूरज,चाँद बन कर चमकने को आतुर है
ठुमुक ठुमुक कर ,धीरे धीरे चलना सीख कर,
जीवन कि दौड़ में,
सबसे आगे निकलने कि होड़ में,
अधीर रहता है
माँ से जिद करके,
माखन मिश्री खाने वाला,
अब न तो माखन  खा सकता है न मिश्री,
क्योंकि,क्लोरोसट्राल  और शुगर,
दोनों ही बड़े हुए है,
क्यों छाया है मुझमे ये पागलपन?
क्या ये ही है जीवन?
कहाँ खो गया वो प्यारा बचपन ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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