आदमी,संभल संभल जाता है
---------------------------------
कभी शर्म के मारे
कभी दर्द के मारे
दुःख और वेदना में
प्यार की उत्तेजना में
आदमी ,पिघल पिघल जाता है
पडोसी की प्रगति देख
दोस्त की सुन्दर बीबी देख
प्यार में दीवाने सा
शमा पर परवाने सा
आदमी,जल जल जल जाता है
गर्मी में पानी देख
मचलती जवानी देख
भूख में खाने को
हुस्न देख पाने को
आदमी मचल मचल जाता है
प्यार भरी भाषा से
अच्छे दिन की आशा से
सुन्दर सी हिरोइन
देख ,मधुर सपने बुन
आदमी,बहल बहल जाता है
प्यार में सब खोकर
लगती है जब ठोकर
अपनों के दिए दुःख से
और हवाओं के रुख से
आदमी संभल संभल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
---------------------------------
कभी शर्म के मारे
कभी दर्द के मारे
दुःख और वेदना में
प्यार की उत्तेजना में
आदमी ,पिघल पिघल जाता है
पडोसी की प्रगति देख
दोस्त की सुन्दर बीबी देख
प्यार में दीवाने सा
शमा पर परवाने सा
आदमी,जल जल जल जाता है
गर्मी में पानी देख
मचलती जवानी देख
भूख में खाने को
हुस्न देख पाने को
आदमी मचल मचल जाता है
प्यार भरी भाषा से
अच्छे दिन की आशा से
सुन्दर सी हिरोइन
देख ,मधुर सपने बुन
आदमी,बहल बहल जाता है
प्यार में सब खोकर
लगती है जब ठोकर
अपनों के दिए दुःख से
और हवाओं के रुख से
आदमी संभल संभल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment