Tuesday, August 16, 2011

बूढा होता प्रजातंत्र

बूढा होता प्रजातंत्र
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चौसठ साल का प्रजातंत्र
और साठ का  जनतंत्र
दोनों की ही उमर सठिया गयी है
और सहारे के लिए,हाथों में,लाठियां आ गयी है
मगर कुछ नेताओं ने,
सत्ता को बना लिया अपनी बपौती है
इसलिए लाठी,जो सहारे के लिए होती है
उसका उपयोग,हथियारों की तरह करवाने लगे है
और विरोधियों पर लाठियां भंजवाने लगे है
विद्रोह की आहट से भी इतना डरते है
की रात के दो बजे,सोती हुई महिलाओं पर,
लाठियां चलवाने लगते है
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे है
कुर्सी पर ही चिपक कर ,रहने के मंसूबें है
पर बूढ़े है,इसलिए आँखे कमजोर हो गयी लगती है
इसलिए विद्रोह की आग भी नहीं दिखती है
सत्ता के मद में पगलाये हुए है
शतुरमुर्ग की तरह,रेत में मुंह छुपाये हुए है
जनता की लाठी जब चलेगी
तो वो इनको उखाड़ फेंकेगी
फिर भी ये लाठियां चला रहे है
सत्ता न छिन जाये,घबरा रहें है
जनता त्रस्त है
पर अच्छे दिनों की आशा में आश्वस्त है
आज पंद्रह अगस्त है
  
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

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