विद्रोह के स्वर
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स्वर विद्रोह के अब,उभरने लगे है
जरा सी हो आहट, वो डरने लगे है
करे कोई इनकी,जरा भी खिलाफत,
शिकंजा उसी पर, ये कसने लगे है
तारीफ़ में खुद की ,गाते कसीदे,
बुराई सुनी तो,भड़कने लगे है
करे कोई अनशन या सत्याग्रही हो,
डंडे उसी पर बरसने लगे है
हुई बुद्धि विपरीत,विनाश काले,
खुद ही जाल में अपने फंसने लगे है
किये झूंठे वादे और सपने दिखाए,
हकीकत ये 'वोटर',समझने लगे है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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स्वर विद्रोह के अब,उभरने लगे है
जरा सी हो आहट, वो डरने लगे है
करे कोई इनकी,जरा भी खिलाफत,
शिकंजा उसी पर, ये कसने लगे है
तारीफ़ में खुद की ,गाते कसीदे,
बुराई सुनी तो,भड़कने लगे है
करे कोई अनशन या सत्याग्रही हो,
डंडे उसी पर बरसने लगे है
हुई बुद्धि विपरीत,विनाश काले,
खुद ही जाल में अपने फंसने लगे है
किये झूंठे वादे और सपने दिखाए,
हकीकत ये 'वोटर',समझने लगे है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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