Monday, September 19, 2011

आठों प्रहर तुम्ही छायी हो

आठों प्रहर तुम्ही छायी हो
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मेरे मन के नीलाम्बर में,तुम आती हो,छा जाती हो
धवल धवल से बादल जैसी,स्मृति पटल पर मंडराती हो
भोर अरुण की आभा से  जब,रूप चमकता प्यारा,स्वर्णिम
मन्त्र मुग्ध सा तुम्हे देखता,हो जाता आनंद विभोर मन
दोपहरी की प्रखर किरण से,जगमग प्रखर रूप की आभा
सांध्य रश्मियाँ तुम्हे सजाती,जैसे सोने संग सुहागा
जैसे जैसे जब दिन ढलता,तुम तारों संग  रास  रचाती
खिलता रूप चाँद सा प्यारा,रजनीगंधा सी महकाती
कभी लता सी लिपटी मन से,कभी फूल सी मुस्काई हो
मेरे मन में,इस जीवन में,आठों प्रहर  तुम्ही छायी हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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