Friday, September 30, 2011

रात मै कैसे काटूं

रात मै कैसे काटूं
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तुम बिस्तर लेटे ही थे,नींद तुम्हे आ गयी
कितनी ही बातें करनी थी,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ
क्या बतलाऊं ,क्या क्या होता ,दिन भर मेरे संग
सास ससुर की सेवा और फिर बच्चे करते तंग
ननदें रहती नाक सिकोड़े,फरमाइश देवर की
कपडे,बर्तन,झाड़ू पोंछा,और सफाई घर की
तुम आते दफ्तर से थक कर,व्यस्त ,पस्त बेचारे
खाना खाते और सो जाते,झट से पाँव पसारे
दो मीठी बातें करने का,समय तुम्हे है नहीं
कितनी ही बातें करनी है,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ
शादी अपनी नयी नयी थी,वो क्या दिन होते थे
एक दूजे की बाहों में हम,जगते थे,सोते थे
बातें इतनी होती थी की जिनका अंत नहीं था
वैवाहिक जीवन का तो असली आनंद वही था
अब मन कुछ मांगे भी तो तुम,मुश्किल से जग पाते
बस अपना कर्तव्य निभा कर,फिर झट से सो जाते
 सभी कामनायें दब कर के,मन में ही रह गयी
कितनी ही बातें करनी है,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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