Saturday, November 19, 2011

माँ के सपनो में बसा-गाँव का पुराना घर

माँ के सपनो में बसा-गाँव का  पुराना घर
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मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की, यादें बार बार आती है
दूर गाँव में कच्चा घर था
फिर भी कितना अच्छा घर था
लीप पोत कर उसे सजाती
माटी की खुशबू थी आती
और कबेलू  वाली छत थी
बारिश में जो कभी टपकती
सच्चा  प्यार वहां पलता था
मिटटी का चूल्हा जलता था
लकड़ी और कंडे जलते थे
राखी से बर्तन मंजते थे
दल भरतिये में थी गलती
अंगारों पर रोटी सिकती
खाने को बिछता था पाटा
घट्टी से पिसता था आटा
शाम ढले फिर दिया बत्ती
चिमनी,लालटेन थी जलती
 सभी काम खुद ही करते थे
कुंए से पानी भरते थे
पीट धोवना,कपडे धुलते
बच्चे सब जाते स्कूल थे
बाबूजी    ऑफिस  जाते  थे
संझा को सब्जी लाते थे
कभी पपीता कभी सिंघाड़े
खाते थे मिल कर के सारे
ना था टी वी,ना ट्रांजिस्टर
बातें करते साथ बैठ कर
बच्चे सुना पहाड़े  रटते
होम वर्क बस ये ही करते
सुन्दर और सादगी वाला
वो जीवन था बड़ा निराला
चलता रहा समय का चक्कर
और हुआ पक्का,कच्चा घर
बिजली आई,नल भी आये
ट्रांजिस्टर,टी.वी. भी लाये
वक़्त लगा फिर आगे बढ़ने
बेटे गए नौकरी करने
और बेटियां गयी सासरे
नहीं कोई भी रहा पास रे
बस माँ थी और बाबूजी थे
संग थे दोनों,बड़े सुखी थे
लेकिन लगा वक़्त का झटका
छोड़ साथ,माँ का,हम सब का
बाबूजी थे स्वर्ग  सिधारे
और हो गया घर सूना रे
जहाँ कभी थी रेला पेली
बूढी  माँ,रह गयी अकेली
बेटे उसे साथ ले आये
पर उस घर की याद सताए
पूरा जीवन जहाँ गुजारा
ईंट ईंट चुन जिसे संवारा
बाबूजी संग ,हँसते गाते
जिसमे बसी हुई है यादे
सूना पड़ा हुआ है वो घर
पर माँ का मन अटका उस पर
और  अब माँ बीमार पड़ी है
लेकिन जिद पर रहे अड़ी है
एक बार जा,वो घर देखूं,आंसू बार बार लाती है
वो यादें,वो बीत गए दिन,बिलकुल भूल नहीं पाती है
मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की,यादें बार बार आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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