Monday, March 5, 2012

मूली के परांठे

     मूली के परांठे
     ----------------
फ़रवरी का ये महिना,फाग का मदमस्त मौसम
करवटें मौसम बदलता,सर्दियाँ ना हो रही कम
रात जागे देर तक थे,मुश्किलों से नींद आई
दुबक हम तुम सो रहे है,ओढ़ कर दुहरी रजाई
रात मूली के परांठे, खा लिए थे चार तुमने
बहुत हलचल मचाएगी,वायु तुम्हारे  उदर में
यूं ही खर्राटे  बहुत है,और मुश्किल लादना मत
मुंह ढके हम सो रहे है, रजाई में  पादना  मत
(बुरा ना मानो होली है)

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

No comments:

Post a Comment