Sunday, March 4, 2012

होली,तपभंग और पाउडर

होली,तपभंग और पाउडर
             १
तप से विश्वामित्र से,हुए इंद्र जब तंग
उनने भेजी मेनका,करने को तप भंग
करने को तपभंग,रूप का जाल बिछाया
था ऋतुराज बसंत,पर्व होली का आया
कह घोटू कवि चली मेनका भर पिचकारी
विश्वामित्र मुनिजी की सूरत रंग डाली
             २
ज्ञानी  विश्वामित्र पर,बरसी रंग फुहार
उनको गुस्सा आ गया,देखा जब निज हाल
देखा जब निज हाल,उठे वो जल्दी जल्दी
ले धूनी से राख,मेनका मुख  पर मल दी
पा नारी स्पर्श  गये तप भूल मुनिवर
खेली होली खूब मेनका के संग जी भर
              ३
उस दिन होली खेल कर,मन में भरे हुलास
ख़ुशी ख़ुशी जब मेनका,पहुंची दर्पण पास
पहुंची दर्पण पास,रूप जब अपना देखा
उजला उजला लगा रंग अपने चेहरे  का
ले धूनी से राख, रोज़ वो मुंह  उजलाती
शुरू पाउडर का प्रचलन है तबसे  साथी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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