विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द
हमारा छोटा सा घर था,
और उस पर एक छोटी सी छत थी
जहाँ हम सर्दी में ,कुनकुनी धूप का आनंद उठाते थे
तेल की मालिश कर ,
नंगे बदन को,
सूरज की गर्मी में तपाते थे
और गर्मी की चांदनी रातों में,
जब शीतल बयार चल रही होती थी,
सफ़ेद चादर पर ,हम दो दो चांदो को निहारते ,
तो तन में सिहरन सी होती थी
पड़े रहते थे ,हम तुम ,साथ साथ
और मधुचंद्रिका सी होती थी,
हमारी हर रात
पर विकास की आंधी में,
हमारे घरों के आसपास ,
उग आई है,बहुमंजिली इमारते
और बदलने पड़ गयी है,हमें अपनी आदतें
बड़ी मुश्किलें हो गयी है
हमारी सारी आजादी खो गयी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
हमारा छोटा सा घर था,
और उस पर एक छोटी सी छत थी
जहाँ हम सर्दी में ,कुनकुनी धूप का आनंद उठाते थे
तेल की मालिश कर ,
नंगे बदन को,
सूरज की गर्मी में तपाते थे
और गर्मी की चांदनी रातों में,
जब शीतल बयार चल रही होती थी,
सफ़ेद चादर पर ,हम दो दो चांदो को निहारते ,
तो तन में सिहरन सी होती थी
पड़े रहते थे ,हम तुम ,साथ साथ
और मधुचंद्रिका सी होती थी,
हमारी हर रात
पर विकास की आंधी में,
हमारे घरों के आसपास ,
उग आई है,बहुमंजिली इमारते
और बदलने पड़ गयी है,हमें अपनी आदतें
बड़ी मुश्किलें हो गयी है
हमारी सारी आजादी खो गयी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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