Tuesday, September 17, 2013

कविता कैसे बन जाती है

              कविता कैसे बन जाती है

तुम अक्सर पूछा करते हो ,कविता कैसे बन जाती है

लो ,मै तुमको बतलाता हूँ, कविता  ऐसे बन जाती है

रातों को नींद न जब आती ,जगता रहता,भरता करवट

जब सपन अधूरे रह जाते , होती है मन में अकुलाहट

कुछ अंतर्मन की पीडायें ,कुछ दुनियादारी के झंझट

तब  उभर उभर कर भाव सभी  ,शब्दों में ढलने लगते झट

होती है मुझे प्रसव पीड़ा , ले जनम कविता आती है

लो मै तुमको बतलाता हूँ ,कविता ऐसे  बन जाती है

इस जीवन के दुर्गम पथ पर,मिलते पत्थर ,चुभते कांटे

अनजान राह पर भटक भटक ,मिलते वीराने ,सन्नाटे

कुछ आते पल तन्हाई के ,जो मुश्किल से ,कटते ,काटे

संघर्षों के उस मौसम में ,जब वक़्त मारता है चांटे

पांच उंगलियाँ ,उपड गाल पर ,अपनी  छाप छोड़  जाती है

 लो मै तुमको बतलाता हूँ,कविता ऐसे बन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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