चार का चक्कर- चार चौके
१
लोग यह क्यों कहते है कि जिन्दगी है चार दिन
फिर अंधेरी रात होगी ,चांदनी है चार दिन
आरजू में कटे दो दिन,और दो इन्तजार में,
उम्रे दराज मांग के ,लाये थे केवल चार दिन
२
चार दिन की बात ये लगती मुझे बेकार है
अमावस को छोड़ कर के ,चांदनी हर बार है
जिन्दगी में सबसे ज्यादा ,हसीं आता दौर तब,
जब हसीना दिलरुबां से ,आँख होती चार है
३
नींद आती चैन से जब,चारपाई पर पड़े
कुर्सियों पर चार पावों की,उमर भर हम चढ़े
और जब रुखसत हुए तो ,चार काँधे ही मिले,
चार के चक्कर में हम तो जिन्दगी भर ही पड़े
४
चार मिलते यार होती जिन्दगी गुलज़ार है
चार खाने चित्त करती आदमी को हार है
आपके व्यक्तित्व में ,लग चार जाते चाँद है,
चार पैसे आ गए तो लोग करते प्यार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
१
लोग यह क्यों कहते है कि जिन्दगी है चार दिन
फिर अंधेरी रात होगी ,चांदनी है चार दिन
आरजू में कटे दो दिन,और दो इन्तजार में,
उम्रे दराज मांग के ,लाये थे केवल चार दिन
२
चार दिन की बात ये लगती मुझे बेकार है
अमावस को छोड़ कर के ,चांदनी हर बार है
जिन्दगी में सबसे ज्यादा ,हसीं आता दौर तब,
जब हसीना दिलरुबां से ,आँख होती चार है
३
नींद आती चैन से जब,चारपाई पर पड़े
कुर्सियों पर चार पावों की,उमर भर हम चढ़े
और जब रुखसत हुए तो ,चार काँधे ही मिले,
चार के चक्कर में हम तो जिन्दगी भर ही पड़े
४
चार मिलते यार होती जिन्दगी गुलज़ार है
चार खाने चित्त करती आदमी को हार है
आपके व्यक्तित्व में ,लग चार जाते चाँद है,
चार पैसे आ गए तो लोग करते प्यार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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