घर घर की कहानी
रहो मिल ,बन दूध ,पानी
जिंदगी होती सुहानी
दूध ही कहलाओगे तुम
काम में आ जाओगे तुम
तेल,पानी सा न बनना
कभी भी होगा मिलन ना
तैरते ही रहोगे पर
अलग अलग ,लिए स्तर
काम कुछ भी आओगे ना
मिलन का सुख पाओगे ना
प्यार हो जो अगर सच्चा
साथ रहना तभी अच्छा
एक में जल भाव जो है
एक तेल स्वभाव जो है
साथ ये बेकार का है
बस दिखावा प्यार का है
भिन्न हो विचारधारा
मेल क्या होगा तुम्हारा
अलग रहना ही सही है
क्योंकि सुखकर बस यही है
अलग निज पहचान तो है
आप आते काम तो है
भले ना सहभागिता है
स्वयं की उपयोगिता है
बात यूं तो है पुरानी
किन्तु घर घर की कहानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रहो मिल ,बन दूध ,पानी
जिंदगी होती सुहानी
दूध ही कहलाओगे तुम
काम में आ जाओगे तुम
तेल,पानी सा न बनना
कभी भी होगा मिलन ना
तैरते ही रहोगे पर
अलग अलग ,लिए स्तर
काम कुछ भी आओगे ना
मिलन का सुख पाओगे ना
प्यार हो जो अगर सच्चा
साथ रहना तभी अच्छा
एक में जल भाव जो है
एक तेल स्वभाव जो है
साथ ये बेकार का है
बस दिखावा प्यार का है
भिन्न हो विचारधारा
मेल क्या होगा तुम्हारा
अलग रहना ही सही है
क्योंकि सुखकर बस यही है
अलग निज पहचान तो है
आप आते काम तो है
भले ना सहभागिता है
स्वयं की उपयोगिता है
बात यूं तो है पुरानी
किन्तु घर घर की कहानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment