अभिमन्यु
पहले मैंने हाथ में चरखी लेकर,
उसका संचालित करना सीखा
मांजे को कब ढील देना ,कब समेटना ,
ये सारा अनुशासन सीखा
और जब मेरी पतंग ,
आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगी ,
पांच,सात,दिग्गज पतंगबाजों की ,
आँखों में चुभने लगी
उन्होंने सबने मिल कर ऐसा पेंच डाला ,
मेरी पतंग को काट डाला
यह तो मानव की प्रवृत्ति है ,
मैं परेशान क्यूँ हूँ
मैं आज का अभिमन्यु हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पहले मैंने हाथ में चरखी लेकर,
उसका संचालित करना सीखा
मांजे को कब ढील देना ,कब समेटना ,
ये सारा अनुशासन सीखा
और जब मेरी पतंग ,
आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगी ,
पांच,सात,दिग्गज पतंगबाजों की ,
आँखों में चुभने लगी
उन्होंने सबने मिल कर ऐसा पेंच डाला ,
मेरी पतंग को काट डाला
यह तो मानव की प्रवृत्ति है ,
मैं परेशान क्यूँ हूँ
मैं आज का अभिमन्यु हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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