जवानी का मोड़
जब होठों के ऊपर और नाक के नीचे,
रूंआली उभरने लगे
जब किसी हसीना को कनखियों से देखने
को दिल करने लगे
जब मन अस्थिर और अधीर हो ,
इधर उधर भटकने लगे
जब किसी कन्या का स्पर्श,मात्र से ,
तन में सिहरन भरने लगे
जब न जाने क्या क्या सोच कर ,
तुम्हारा मन मुस्कराता है
समझलो,आप उम्र के उस मोड़ पर है ,
जो जवानी की ओर जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब होठों के ऊपर और नाक के नीचे,
रूंआली उभरने लगे
जब किसी हसीना को कनखियों से देखने
को दिल करने लगे
जब मन अस्थिर और अधीर हो ,
इधर उधर भटकने लगे
जब किसी कन्या का स्पर्श,मात्र से ,
तन में सिहरन भरने लगे
जब न जाने क्या क्या सोच कर ,
तुम्हारा मन मुस्कराता है
समझलो,आप उम्र के उस मोड़ पर है ,
जो जवानी की ओर जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment