होली के मूड में -दो कवितायें
१
आयी होली ,आ लगा दूं,तेरे गालों पर गुलाल,
रंग गालों का गुलाबी और भी खिल जाएगा
मगर मुझ पर आहिस्ते से ही लगाना रंग तुम,
बढ़ी दाढ़ी ,हाथ नाज़ुक ,तुम्हारा छिल जाएगा
बात सुन ये, कहा उनने ,नज़र तिरछी डाल कर,
चुभाते ही रहते दाढ़ी,तुम हमारे गाल पर
खुरदरेपन की चुभन का ,मज़ा ही कुछ और है,
मर्द हो तुम ,मज़ा तुमको ये नहीं मिल पायेगा
२
अबकी होली में कुछ ऐसा ,प्यारा हुआ प्रसंग ,सजन
यूं ही बावरे हम,ऊपर से ,हमने पी ली भंग ,सजन
ऐसी ऐसी जगहों पर है,तुमने डाला रंग , सजन
अपने रंगमे भिगो भिगो कर,खूब किया है तंग ,सजन
रंग गया ,रंग में तुम्हारे ,है मेरा हर अंग ,सजन
जी करता ,जीवन भर होली,खेलूँ तेरे संग ,सजन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
१
आयी होली ,आ लगा दूं,तेरे गालों पर गुलाल,
रंग गालों का गुलाबी और भी खिल जाएगा
मगर मुझ पर आहिस्ते से ही लगाना रंग तुम,
बढ़ी दाढ़ी ,हाथ नाज़ुक ,तुम्हारा छिल जाएगा
बात सुन ये, कहा उनने ,नज़र तिरछी डाल कर,
चुभाते ही रहते दाढ़ी,तुम हमारे गाल पर
खुरदरेपन की चुभन का ,मज़ा ही कुछ और है,
मर्द हो तुम ,मज़ा तुमको ये नहीं मिल पायेगा
२
अबकी होली में कुछ ऐसा ,प्यारा हुआ प्रसंग ,सजन
यूं ही बावरे हम,ऊपर से ,हमने पी ली भंग ,सजन
ऐसी ऐसी जगहों पर है,तुमने डाला रंग , सजन
अपने रंगमे भिगो भिगो कर,खूब किया है तंग ,सजन
रंग गया ,रंग में तुम्हारे ,है मेरा हर अंग ,सजन
जी करता ,जीवन भर होली,खेलूँ तेरे संग ,सजन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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