जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है
इस तरह से कहर कुदरत ढा रही है
हर तरफ से मार पड़ती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है ,
मंदिरों में भीड़ बढ़ती जा रही है
बढ़ रही ऊंचाई जितनी बिल्डिंगों की ,
उतने ही इंसान बौने हो गए है
अब न बच्चे खेलते है झुनझुनो से,
अब तो 'मोबाइल',खिलोने हो गए है
बच्चा पहला शब्द 'माँ' ना बोलता है,
सबसे पहले 'हेलो'करना सीखता है
पैदा होते आँख जब वो खोलता है ,'
'फेस बुक 'पर उसका चेहरा दीखता है
तरक्की की सीडियां हम चढ़ रहे है,
या तरक्की हम पे चढ़ती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है,
मंदिरों में भीड़ बढ़ती जा रही है
दोस्ताना रोज रुसवा हो रहा है ,
और रिश्ते धुंवा धुंवा हो रहे है
बुजुर्गों को खुदा के मानिंद समझना ,
अदब के वो सब सलीके खो रहे है
रोज अस्मत औरतों की लुट रही है,
बिक रहा ईमान ,खुल्ले आम अब है
हम पतन के गर्द में नित गिर रहे है,
हो रहे संस्कार मटियामेट सब है
आदमी खुदगर्ज होता जा रहा है ,
और इंसानियत मरती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है ,
मंदिरों में भीड़ बढ़ती जा रही है
सोचता इंसान है मंदिर में जा के ,
सर झुका कर,पाप धुल जाएंगे सारे
एक लोटा दूध शिवलिंग पर चढ़ा कर ,
स्वर्ग के भी द्वार खुल जाएँगे सारे
पागलों सी भीड़ मन्दिरमे उमड़ती ,
भजन,प्रवचन ,एक धंधा बन गया है ,
करोड़ों का चढ़ावा ,जाता चढ़ाया ,
लोभ में इंसान अँधा बन गया है
पैसे के बल ,काम हो सकते है सारे,
आस्थाएं ,यूं बदलती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है ,
मंदिरों में ,भीड़ बढ़ती जा रही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इस तरह से कहर कुदरत ढा रही है
हर तरफ से मार पड़ती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है ,
मंदिरों में भीड़ बढ़ती जा रही है
बढ़ रही ऊंचाई जितनी बिल्डिंगों की ,
उतने ही इंसान बौने हो गए है
अब न बच्चे खेलते है झुनझुनो से,
अब तो 'मोबाइल',खिलोने हो गए है
बच्चा पहला शब्द 'माँ' ना बोलता है,
सबसे पहले 'हेलो'करना सीखता है
पैदा होते आँख जब वो खोलता है ,'
'फेस बुक 'पर उसका चेहरा दीखता है
तरक्की की सीडियां हम चढ़ रहे है,
या तरक्की हम पे चढ़ती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है,
मंदिरों में भीड़ बढ़ती जा रही है
दोस्ताना रोज रुसवा हो रहा है ,
और रिश्ते धुंवा धुंवा हो रहे है
बुजुर्गों को खुदा के मानिंद समझना ,
अदब के वो सब सलीके खो रहे है
रोज अस्मत औरतों की लुट रही है,
बिक रहा ईमान ,खुल्ले आम अब है
हम पतन के गर्द में नित गिर रहे है,
हो रहे संस्कार मटियामेट सब है
आदमी खुदगर्ज होता जा रहा है ,
और इंसानियत मरती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है ,
मंदिरों में भीड़ बढ़ती जा रही है
सोचता इंसान है मंदिर में जा के ,
सर झुका कर,पाप धुल जाएंगे सारे
एक लोटा दूध शिवलिंग पर चढ़ा कर ,
स्वर्ग के भी द्वार खुल जाएँगे सारे
पागलों सी भीड़ मन्दिरमे उमड़ती ,
भजन,प्रवचन ,एक धंधा बन गया है ,
करोड़ों का चढ़ावा ,जाता चढ़ाया ,
लोभ में इंसान अँधा बन गया है
पैसे के बल ,काम हो सकते है सारे,
आस्थाएं ,यूं बदलती जा रही है
जैसे जैसे पाप बढ़ता जा रहा है ,
मंदिरों में ,भीड़ बढ़ती जा रही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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