आपकी जरुरत नहीं है
सजा कर पकवान हम पर,प्रेम से दावत उड़ाई,
भर गया जब पेट तो फिर ,उठाया और फेंक डाला
समझ कर ,हमको रखा है ,उनने दोने पत्तलों सा ,
जब नहीं जरुरत रही तो ,उठाया,घर से निकाला
जब तलक,मधुकोश में था ,भरा संचित ,प्रेम का रस,
तब तलक, अनुराग जतला ,रहे पीते ,प्रेम अमृत
प्यास अपनी जब बुझाली ,और हुआ जब कोष खाली,
खो गयी उपयोगिता तो,कर दिया हमको तिरस्कृत
चाह थी जब तक अधूरी,रहे करते जी हजूरी ,
और मतलब निकलने पर ,लोग बस कहते यही है
आपकी जरुरत नहीं है
हवन की लकड़ी समझ कर ,कुण्ड में हमको जलाया
मन्त्र पढ़ , आहुतियां दी ,पुण्य सब तुमने कमाया
यज्ञ जब पूरा हुआ तो ,रह गए हम राख बनके ,
और बस ये किया तुमने , हमें गंगा में बहाया
यदि अगन के सात फेरे,लगा लेते साथ मेरे,
जिंदगी जगमगा जाती ,दूर होते सब अँधेरे
पर किसी से बाँधना बंधन, नहीं आदत तुम्हारी ,
एक जगह रुकते नहीं हो,बदलते रहते बसेरे
लाख बोला ,साथ मेरे ,बसा लो तुम नीड अपना ,
किन्तु तुम उन्मुक्त पंछी,कहा,ये आदत नहीं है
आपकी जरुरत नहीं है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सजा कर पकवान हम पर,प्रेम से दावत उड़ाई,
भर गया जब पेट तो फिर ,उठाया और फेंक डाला
समझ कर ,हमको रखा है ,उनने दोने पत्तलों सा ,
जब नहीं जरुरत रही तो ,उठाया,घर से निकाला
जब तलक,मधुकोश में था ,भरा संचित ,प्रेम का रस,
तब तलक, अनुराग जतला ,रहे पीते ,प्रेम अमृत
प्यास अपनी जब बुझाली ,और हुआ जब कोष खाली,
खो गयी उपयोगिता तो,कर दिया हमको तिरस्कृत
चाह थी जब तक अधूरी,रहे करते जी हजूरी ,
और मतलब निकलने पर ,लोग बस कहते यही है
आपकी जरुरत नहीं है
हवन की लकड़ी समझ कर ,कुण्ड में हमको जलाया
मन्त्र पढ़ , आहुतियां दी ,पुण्य सब तुमने कमाया
यज्ञ जब पूरा हुआ तो ,रह गए हम राख बनके ,
और बस ये किया तुमने , हमें गंगा में बहाया
यदि अगन के सात फेरे,लगा लेते साथ मेरे,
जिंदगी जगमगा जाती ,दूर होते सब अँधेरे
पर किसी से बाँधना बंधन, नहीं आदत तुम्हारी ,
एक जगह रुकते नहीं हो,बदलते रहते बसेरे
लाख बोला ,साथ मेरे ,बसा लो तुम नीड अपना ,
किन्तु तुम उन्मुक्त पंछी,कहा,ये आदत नहीं है
आपकी जरुरत नहीं है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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