संवाद -बादल से
मुझसे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ
चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
सिर्फ धरती है जो मुझको,समा लेती सीने में ,
और बाकी सब बहा देते ,पराया मान लेते है
बहुत जी चाहता मेरा ,मिलूं आकर के धरती से,
हवाएँ आवारा लेकिन मुझे अक्सर उडा लेती ,
सरोवर पीते मेरा जल ,मगर नदियां बहा देती ,
समंदर भी उडा देते,नहीं अहसान लेते है
घोटू
मुझसे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ
चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
सिर्फ धरती है जो मुझको,समा लेती सीने में ,
और बाकी सब बहा देते ,पराया मान लेते है
बहुत जी चाहता मेरा ,मिलूं आकर के धरती से,
हवाएँ आवारा लेकिन मुझे अक्सर उडा लेती ,
सरोवर पीते मेरा जल ,मगर नदियां बहा देती ,
समंदर भी उडा देते,नहीं अहसान लेते है
घोटू
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