बीत गए दिन
बीत गए दिन अवगुंठन के ,
अब केवल सहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
अपना मन बहला लेते है
जो पकवान रोज खाते थे,
कभी कभी ही चख पाते है
जोश जवानी का गायब है ,
अब जल्दी ही थक जाते है
'आई लव यू 'उनको कह देते ,
उनसे भी कहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
अपना मन बहला लेते है
कभी दर्द मेरा सर करता ,
कभी पेट दुखता तुम्हारा
कभी थकावट, बने रुकावट,
एक दूजे से करें किनारा
कोई न कोई बहाना करके ,
इच्छा को टहला देते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
अपना मन बहला लेते है
गया ज़माना रोज चाँद का ,
जब दीदार हुआ करता था
मौज ,मस्तियाँ होती हर दिन ,
जब त्योंहार हुआ करता था
बीती यादों की गंगा में,
बस खुद को नहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
अपना मन बहला लेते है
शाश्वत सत्य बुढ़ापा लेकिन ,
उमर बढ़ी और जोश घट गया
एक दूजे की पीड़ा में ही ,
हम दोनों का ध्यान बंट गया
शारीरिक सुख ,गौण हो गया ,
मन का सुख पहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
अपना मन बहला लेते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
बीत गए दिन अवगुंठन के ,
अब केवल सहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
अपना मन बहला लेते है
जो पकवान रोज खाते थे,
कभी कभी ही चख पाते है
जोश जवानी का गायब है ,
अब जल्दी ही थक जाते है
'आई लव यू 'उनको कह देते ,
उनसे भी कहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
अपना मन बहला लेते है
कभी दर्द मेरा सर करता ,
कभी पेट दुखता तुम्हारा
कभी थकावट, बने रुकावट,
एक दूजे से करें किनारा
कोई न कोई बहाना करके ,
इच्छा को टहला देते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
अपना मन बहला लेते है
गया ज़माना रोज चाँद का ,
जब दीदार हुआ करता था
मौज ,मस्तियाँ होती हर दिन ,
जब त्योंहार हुआ करता था
बीती यादों की गंगा में,
बस खुद को नहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
अपना मन बहला लेते है
शाश्वत सत्य बुढ़ापा लेकिन ,
उमर बढ़ी और जोश घट गया
एक दूजे की पीड़ा में ही ,
हम दोनों का ध्यान बंट गया
शारीरिक सुख ,गौण हो गया ,
मन का सुख पहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
अपना मन बहला लेते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
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