मर्यादा
भले चाँद का टुकड़ा हो तुम,परियों जैसा रूप तुम्हारा ,
लेकिन उसका नग्न प्रदर्शन ,तकलीफें देता ज्यादा है
घर की चार दिवारी में तुम,जो चाहो वो कर सकते हो,
लेकिन घर के बाहर तो कुछ ,रखनी पड़ती मर्यादा है
माना आप बहुत सुन्दर है,और काया है कंचन जैसी
नहीं जरूरी उसे दिखाने ,घूमें बन कर, मेम विदेशी
परिधानों में ,ढके हुए तन की अपनी सज्जा होती है
तुम्हारा व्यक्तित्व निखरता ,आँखों में लज्जा होती है
बन शालीन ,लाजवन्ती सी,चलती हो जब नज़र झुका कर
नहीं छेड़ता ,कोई शोहदा ,तुमको सीटी बजा बजा कर
खुले वस्त्र जो तन दरशाते ,देते है आमंत्रण जैसा
इसीलिये कुछ महिलाओं संग ,होता रहता ,ऐसा वैसा
अपना रूप प्रदर्शित करने के कितने ही मौके आते
उसे लुभाओ ,जो तुम्हारे ,प्रीतम है,पतिदेव कहाते
रूप अगर शालीन,लजीला ,जैसे सोना और सुहागा ,
खुद आगे बढ़ ,बोला करता,चाहे कितना ही सादा है
घर की चार दिवारी में तुम ,जो चाहे वो कर सकते हो,
लेकिन घर के बाहर तो कुछ ,रखनी पड़ती ,मर्यादा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भले चाँद का टुकड़ा हो तुम,परियों जैसा रूप तुम्हारा ,
लेकिन उसका नग्न प्रदर्शन ,तकलीफें देता ज्यादा है
घर की चार दिवारी में तुम,जो चाहो वो कर सकते हो,
लेकिन घर के बाहर तो कुछ ,रखनी पड़ती मर्यादा है
माना आप बहुत सुन्दर है,और काया है कंचन जैसी
नहीं जरूरी उसे दिखाने ,घूमें बन कर, मेम विदेशी
परिधानों में ,ढके हुए तन की अपनी सज्जा होती है
तुम्हारा व्यक्तित्व निखरता ,आँखों में लज्जा होती है
बन शालीन ,लाजवन्ती सी,चलती हो जब नज़र झुका कर
नहीं छेड़ता ,कोई शोहदा ,तुमको सीटी बजा बजा कर
खुले वस्त्र जो तन दरशाते ,देते है आमंत्रण जैसा
इसीलिये कुछ महिलाओं संग ,होता रहता ,ऐसा वैसा
अपना रूप प्रदर्शित करने के कितने ही मौके आते
उसे लुभाओ ,जो तुम्हारे ,प्रीतम है,पतिदेव कहाते
रूप अगर शालीन,लजीला ,जैसे सोना और सुहागा ,
खुद आगे बढ़ ,बोला करता,चाहे कितना ही सादा है
घर की चार दिवारी में तुम ,जो चाहे वो कर सकते हो,
लेकिन घर के बाहर तो कुछ ,रखनी पड़ती ,मर्यादा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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