कुछ तो बीबी खर्राटे भरती है ,
और कुछ बीते दिन की याद सताती
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट,
बुढ़ापे में नींद कहाँ है आती
कभी पेट में गैस बना करती है ,
और कभी सिर में होता भारीपन
कंधे ,गरदन कभी दर्द करते है,
पैरों या पिंडली में होती तड़फन
अंग अंग को दर्द कचोटा करता ,
कभी काटने लगता है सूनापन
बार बार प्रेशर बनता ब्लेडर में,
बाथरूम जाने को करता है मन
कभी हाथ तो कभी पैर दुखते है ,
एक अजीब सी तड़फन है तड़फ़ाती
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट,
बुढ़ापे में नींद कहाँ है आती
भूले भटके यदि लग जाती झपकी,
तो फिर सपने आकर हमें सताते
बार बार मन में घुटती रहती है,
कुछ अनजान ,अधूरी मन की बातें
जब यादों के बादल घुमड़ा करते ,
आंसू की होने लगती बरसातें
मोह माया के बंधन को अब छोडो,
यूं ही बस हम है खुद को समझाते
ऐसी नींद उचटती है आँखों से ,
भोर तलक फिर नहीं लौट कर आती
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट ,
बुढ़ापे में नींद कहाँ है आती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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