Monday, July 27, 2015

गोलगप्पे

     
एक बड़े माल के ,नामी रेस्तराँ में,
छह गोलगप्पे खाने के लिये 
हमने पूरे साठ  रूपये खर्च किये 
कूपन देकर ,इन्तजार करने के बाद 
एक प्लेट आयी हमारे हाथ 
जिसमे एक कटोरी में पुदीने का पानी डाला था 
दूसरी में छह गोलगप्पे ,
और उबले हुए आलू का मसाला था 
खुद ही गोलगप्पे में ,हमने जब छेद किये 
उसमे ही एक दो तो ,बेचारे टूट गये 
बाकी में भर कर आलू का मसाला 
धीरे धीरे चम्मच से ,पानी था डाला 
तब जाकर मुश्किल से गोलगप्पे खा पाये 
ऐसे में वो गली के ठेले वाले के ,
वो प्यारे गोलगप्पे याद आये 
वो ठेले वाला ,आपको प्रेम से बुलाता है 
दोना पकड़ाता है ,
फिर आपकी मर्जी के मुताबिक़ ,
आटे  के या सूजी के गोलगप्पे खिलाता है 
 छेद  वो ही करता है ,आलू भी भरता है 
 फिर आपके स्वादानुसार ,खट्टा मीठा पानी भर ,
एक एक गोलगप्पा ,दोने में धरता है 
जब तक आपके मुंह में ,
पहले गोलगप्पे का जायका घुलता है 
तब तक ही आपको ,दूसरा गोलगप्पा  मिलता है 
आखिर में दोना भर ,खट्टा मीठा पानी भी ,
मुफ्त  देता है 
उस पर छह गोलगप्पों के ,
सिर्फ दस रूपये लेता है 
माल में ,छह गुने पैसे भी खर्च करो 
फिर खुद ही चम्मच से ,गोलगप्पे में पानी भरो 
फिर बड़े अनुशासन में ,धीरे धीरे खाओ 
भले ही पानी,खट्टा या तीखा है 
अरे ये भी कोई चाट खाने का तरीका है 
चाट खाओ और चटखारे  ना लो,
ऐसे भी कोई चाट खाता है 
गोलगप्पे का असली मज़ा तो ,
ठेले पर खड़े होकर ,
चटखारे ले लेकर ,खाने में आता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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