कितने दिन जीवन बाकी है
नहीं पता यह मौत किसी को कब आ जाए ,
नहीं पता यह कितने दिन जीवन बाकी है
नहीं किसी को कभी पता यह लग पाता है,
कितने दिन तक ,साँसों की सरगम बाकी है
फिर भी उलझे बैठें है दुनियादारी मे ,
परेशान है ,सोच रहे है कल ,परसों की
है कितनी अजीब फितरत इन्सां की देखो,
कल का नहीं भरोसा ,बात करे बरसों की
मोहजाल में फंसे हुए,माया में उलझे ,
जाने क्या क्या ,लिए लालसा भटक रहे है
अपनी सभी कमाई धन दौलत ,वैभव में ,
रह रह कर के ,प्राण हमारे अटक रहे है
धीरे धीरे ,क्षीण हो रही ,जर्जर काया ,
कई व्याधियों ने घेरा है, तन पीड़ित है
साथ समय के ,बदल रहा व्यवहार सभी का ,
अपनों के बेगानेपन से मन पीड़ित है
ना ढंग से कुछ खा पाते ना पी पाते है ,
फिर भी मन में चाह ,और हम जी ले थोड़ा
नज़र क्षीण है,याददास्त कमजोर पड़ गयी,
लोभ मोह ने पर अब तक पीछा ना छोड़ा
पता नहीं यह मानव मन की क्या प्रकृती है,
कृत्तिम साँसे लेकर कब तक चल पायेगा
जिस दिन तन से उड़ जाएंगे प्राणपंखेरू ,
हाड़मांस का पिंजरे है तन ,जल जाएगा
तो क्यों ना जितने दिन शेष बचा है जीवन ,
उसके एक एक पल का,जम कर लाभ उठायें
हंसी ख़ुशी से जिए ,तृप्त कर निज तन मन को,
जितना भी हो सकता ,सब में ,प्यार लुटाएं
सभी जानते,दुनिया में,यह सत्य अटल है,
माटी में ही माटी का संगम बाकी है
नहीं पता यह मौत किसी को कब आ जाए,
नहीं पता यह कितने दिन जीवन बाकी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नहीं पता यह मौत किसी को कब आ जाए ,
नहीं पता यह कितने दिन जीवन बाकी है
नहीं किसी को कभी पता यह लग पाता है,
कितने दिन तक ,साँसों की सरगम बाकी है
फिर भी उलझे बैठें है दुनियादारी मे ,
परेशान है ,सोच रहे है कल ,परसों की
है कितनी अजीब फितरत इन्सां की देखो,
कल का नहीं भरोसा ,बात करे बरसों की
मोहजाल में फंसे हुए,माया में उलझे ,
जाने क्या क्या ,लिए लालसा भटक रहे है
अपनी सभी कमाई धन दौलत ,वैभव में ,
रह रह कर के ,प्राण हमारे अटक रहे है
धीरे धीरे ,क्षीण हो रही ,जर्जर काया ,
कई व्याधियों ने घेरा है, तन पीड़ित है
साथ समय के ,बदल रहा व्यवहार सभी का ,
अपनों के बेगानेपन से मन पीड़ित है
ना ढंग से कुछ खा पाते ना पी पाते है ,
फिर भी मन में चाह ,और हम जी ले थोड़ा
नज़र क्षीण है,याददास्त कमजोर पड़ गयी,
लोभ मोह ने पर अब तक पीछा ना छोड़ा
पता नहीं यह मानव मन की क्या प्रकृती है,
कृत्तिम साँसे लेकर कब तक चल पायेगा
जिस दिन तन से उड़ जाएंगे प्राणपंखेरू ,
हाड़मांस का पिंजरे है तन ,जल जाएगा
तो क्यों ना जितने दिन शेष बचा है जीवन ,
उसके एक एक पल का,जम कर लाभ उठायें
हंसी ख़ुशी से जिए ,तृप्त कर निज तन मन को,
जितना भी हो सकता ,सब में ,प्यार लुटाएं
सभी जानते,दुनिया में,यह सत्य अटल है,
माटी में ही माटी का संगम बाकी है
नहीं पता यह मौत किसी को कब आ जाए,
नहीं पता यह कितने दिन जीवन बाकी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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