कोई नहीं चाहता बंधना ,परवारिक बन्धन में
फटी जीन्स से फटे हुए से,रिश्ते है फैशन में
छोड़ ओढ़नी गयी लाज का पहरा फैशन मारी
अब शादी और त्योंहारों पर ही दिखती है साडी
वो भी नाभि,कटि दर्शना ,बस नितंब पर अटकी
अंग प्रदर्शित करती नारी, संस्कार से भटकी
खुली खुली सी चोली पहने ,पूरी पीठ दिखाए
अर्धा स्तन का करे प्रदर्शन और उस पर इतराये
ना आँखों में शरम हया है,ना घूंघट प्रचलन में
कोई नहीं चाहता बंधना परिवारिक बन्धन में
चाचा,चाची ,ताऊ ताई ,रिश्ते सब दूरी के
अब तो दादा दादी के भी रिश्ते मजबूरी के
गली मोहल्ले,पास पड़ोसी ,रिश्ते हुए सफाया
मैं और मेरी मुनिया में है अब संसार समाया
ऐसी चली हवा पश्चिम की ,हम अपनों को भूले
पैसे चार कमाए क्या बस गर्वित होकर फूले
हुए सेल्फिश,सेल्फी खींचें अहम भर गया मन में
फटी जीन्स से,फटे हुए से,रिश्ते अब फैशन में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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